ना तेरा हि घर है, ना मेरा हि घर है..
मिले हैं जहां, ये तो बस रहगुज़र है..
खुदा ने बनाई है, दुनियां सिफ़र सी..
मिलेंगे तुम्हें फिर, यही लफ्ज़ पर है..
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर":-
Tuesday 29 September 2015
अलविदा ना कहना
Wednesday 4 March 2015
कोई मुझसे ये न पूछे
कोई मुझसे ये न पूछे, टूट के प्यार में क्या होता है
रूह बिना ज़िंदा रहता वो, जिसका प्यार ज़ुदा होता है
कोई मुझसे ....................................................
सूने हो जाते सन्नाटे, आंसू भी रोने लगते हैं
दर्द भी दर्द से रो देता है, इतना दर्द उसे होता है
कोई मुझसे ....................................................
आईने पहचान न पाते, जाने किसका अक्स दिखाते
तन्हाई भी खो जाती है, उसका हाल बुरा होता है
कोई मुझसे ....................................................
चुप हो जाती है ख़ामोशी, नींद तो खुद ही सो जाती है
जिसने हालत ऐसी कर दी, उसके लिए दुआ करता है
कोई मुझसे ....................................................
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर" :-
रूह बिना ज़िंदा रहता वो, जिसका प्यार ज़ुदा होता है
कोई मुझसे ....................................................
सूने हो जाते सन्नाटे, आंसू भी रोने लगते हैं
दर्द भी दर्द से रो देता है, इतना दर्द उसे होता है
कोई मुझसे ....................................................
आईने पहचान न पाते, जाने किसका अक्स दिखाते
तन्हाई भी खो जाती है, उसका हाल बुरा होता है
कोई मुझसे ....................................................
चुप हो जाती है ख़ामोशी, नींद तो खुद ही सो जाती है
जिसने हालत ऐसी कर दी, उसके लिए दुआ करता है
कोई मुझसे ....................................................
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर" :-
Tuesday 27 January 2015
रात का अँधेरा -(कविता )
आता है बाद शाम के ये रात का अँधेरा
चिंगारियों के जैसे तारों का छाये घेरा
आता है बाद...................................
दीखता नहीं है कुछ भी, दीखते हैं फिर भी तारे
मिल जुल के पूछते है, क्या हम हैं तुमको प्यारे?
हम तो हैं रोज आते, और फिर हैं रोज जाते
ये आना, जाना देख के क्या सोचे मन ये तेरा?
आता है बाद...................................
आता है चाँद ऐसे, राजा हो तारों का वो !
बारात भी वो क्या हो जो वो भी तारो का हो!
हम चाँद से क्या पूछें? ये चाँद पूछता है
रातों में हो उजाला, या घाना अँधेरा?
आता है बाद...................................
प्रश्नो के ये झड़ी है, जो सामने पड़ी है
लगता है सज़ सवँर के प्रश्नावली खड़ी है!
बस पूछते ही रहते ये चाँद ये सितारे
और उनकी उत्तरो को मन जूझता है मेरा
आता है बाद...................................
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर" :-
आकाश को छु लो - (कविता)
हम बदलेंगे युग बदलेगा, शुभ अवसर पर प्रण ये लेलो
सत्य अहिंसा की वेदी पर बैठ के तुम आकाश को छु लो
जो १८५७ में स्वतंत्रता की ज्वाला थी
१९४७ में वो विजय फूल की माला थी
इसके इतर तभी कही से बटवारे की आग लगी
कहीं अभी भी उसी आग की चिंगारी है सुलग रही
प्रेम के जल से उस अग्नि को बुझा दो फिर तो खुसी से फूलो
सत्य अहिंसा की वेदी ......................................
उनके जीवन में ख़ुशी थी देश पे जो बलिदान हो गए
अपने देश की खुशियों खातिर, युद्ध भूमि में प्राण को गए
जमती ही गयीं उनकी नब्ज़ें, पर इंकलाब का साज़ न त्यागे
इच्छा नहीं की खुद के सुख की , कभी भी कोई ताज न मांगे
कफ़न बांध जो देश जो पूजे, शुभ अवसर पर उन्हें न भूलो
सत्य अहिंसा की वेदी ......................................
अँधेरे में जो बैठे हैं, उनकी जीवन में प्रकाश भरो
"काम देश के आएं हम भी" ऐसी इच्छा मन में करो
जिसमे देशहित हो सर्वोपरि, सपनो को वो पत्ते खोलो
अपनी कीर्ति ही न देखो, कमियों को भी कभी टटोलो
बैठ किसी सुख की नैया में सपनो की लहरों पे न झूलो
सत्य अहिंसा की वेदी ......................................
भारत के इस हरित चमन के नन्हें मुन्हें नटखट फूलों
सत्य अहिंसा की वेदी ......................................
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर" :-
अंतिम पहर - (कविता)
अलविदा कहता है दिन को रात्रि का अंतिम पहर
ये सितारे जा रहे हैं, जा रहा हैं चाँद भी
कौन कहता उन्हें, "ऐे चाँद तारे जा ठहर"
अलविदा कहता है........................................
दिन जो था हैं रात्रि वो ही पर नहीं वो बात हैं
तब तो था सूरज चमकता पर अब तो उजला चाँद हैं
रुक न सकता चाँद भी, नपनी हैं उसकी भी डगर
अलविदा कहता है........................................
ले सहारा सूर्य का ये दिन बना, पर नहीं दिन का ही साथी दिन बना
त्याग कर दिनकर गया, रजनीश आया साथ में
थम कर रजनीश को, निज को बनाया रात ने
ऐ दिन नहीं अब कुछ तेरा, जो कुछ भी तो रात्रि भर
अलविदा कहता है........................................
क्रन्दित हुआ हैं दिन ये कह की, सूर्य क्यों न साथ हैं?
साथ हैं ये चाँद तारे, अब नाम मेरा रात हैं
सूर्य भी अब क्या करे? क्या, ये कहे?
"दिन नहीं अब बलित की मुझको सहे,
चाँद हैं प्रतिविम्ब मेरा, अब दिन न डर"
अलविदा कहता है........................................
पवन भी ये जान पाया, की दिन नया अब आ रहा
रात्रि का अंतिम पहर अब रात्रि को ले जारहा
अनुभव नया सबको हुआ, नभचर की गूंजें हो रही
मिल रहा सबकुछ पुनः, अब रात्रि है बस खो रही
गिरता है क्यों हर दिन नया, बन कर के हर दिन पर कहर
अलविदा कहता है........................................
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर":-
Monday 26 January 2015
हे रश्मि - (कविता)
हे रश्मि!
हे रश्मि हमारे जीवन को अपने प्रकाश से भर देती
मेरे मन के अंधेरो को बस बदल दीप्ति में तुम देती
के रश्मि हमारे जीवन को बस तेजोमय तुम कर देती
इस मन में फैला है वीरान, हो रहा अदृष्टित यहाँ प्राण
तुम तो आधार हो सूरज की मुझको सूरज सा कर देती
हे रश्मि हमारे ....................................................
इस जग सब रंगीन निराले, बन बैठे है अँधेरे काले
इन पर तुम अपनी दृष्टि डाल, सबको कुछ रंगीला कर देती
हे रश्मि हमारे ....................................................
यूँ तो घटता बढ़ता है चाँद, पर मैं हूँ कृष्ण का तुच्छ चाँद
मेरे समीप तुम आकर के , और मुझको गले लगा कर के
हमें पूर्ण चाँद तुम कर देती
हे रश्मि हमारे ....................................................
जो बना हुआ है एक वीरान, उसको कर दो सौन्दर्यवान
ये इस चमन को फूलों से भर, सब क्रंदन को तुम हर लेती
हे रश्मि हमारे ....................................................
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर" :-
हे रश्मि हमारे जीवन को अपने प्रकाश से भर देती
मेरे मन के अंधेरो को बस बदल दीप्ति में तुम देती
के रश्मि हमारे जीवन को बस तेजोमय तुम कर देती
इस मन में फैला है वीरान, हो रहा अदृष्टित यहाँ प्राण
तुम तो आधार हो सूरज की मुझको सूरज सा कर देती
हे रश्मि हमारे ....................................................
इस जग सब रंगीन निराले, बन बैठे है अँधेरे काले
इन पर तुम अपनी दृष्टि डाल, सबको कुछ रंगीला कर देती
हे रश्मि हमारे ....................................................
यूँ तो घटता बढ़ता है चाँद, पर मैं हूँ कृष्ण का तुच्छ चाँद
मेरे समीप तुम आकर के , और मुझको गले लगा कर के
हमें पूर्ण चाँद तुम कर देती
हे रश्मि हमारे ....................................................
जो बना हुआ है एक वीरान, उसको कर दो सौन्दर्यवान
ये इस चमन को फूलों से भर, सब क्रंदन को तुम हर लेती
हे रश्मि हमारे ....................................................
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर" :-
कर्मवीर- (कविता)
हम भारत के कर्मवीर अपनी ताकत दिखला देंगे
सूरज सा तेज़ भी है हममे पत्थर को भी पिघला देंगे
भारत है अपनी जन्म भूमि जिसपे जन्मे और मरेंगे हम
हम सब की है ये कर्म भूमि इसपे निछार सब करेंगे हम
जिस मातृ भूमि ने दिया हमें है सब कुछ जो जीने के लिए
उस मातृ भूमि के अर्पण में ये जीवन अपना ला देंगे
हम भारत के कर्मवीर ...............................................
रानी बाई और शिवा प्रताप से फूल खिले जिस आँचल में
उनकी सुगंध के बाद भी क्या आवश्यक है नीलांचल में
फूलों सा चमन में महक गए काँटों सा रक्षक बन कर के
उनके इस चमन की रक्षा को हम तन मन अपना लगा देंगे
हम भारत के कर्मवीर ...............................................
दिन दूर नहीं जो चाहत है, वो बात हमारी सुनो भारती
सब से आगे भारत अपना और करे विश्व तेरी ही आरती
जिसका हो मुकुट हिमालय सा, सागर भी जिसके चरण धुले
ऐसे भारत की शान पे हम, कर अपना सब कुर्बान देंगे
हम भारत के कर्मवीर ...............................................
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर" :-
सूरज सा तेज़ भी है हममे पत्थर को भी पिघला देंगे
भारत है अपनी जन्म भूमि जिसपे जन्मे और मरेंगे हम
हम सब की है ये कर्म भूमि इसपे निछार सब करेंगे हम
जिस मातृ भूमि ने दिया हमें है सब कुछ जो जीने के लिए
उस मातृ भूमि के अर्पण में ये जीवन अपना ला देंगे
हम भारत के कर्मवीर ...............................................
रानी बाई और शिवा प्रताप से फूल खिले जिस आँचल में
उनकी सुगंध के बाद भी क्या आवश्यक है नीलांचल में
फूलों सा चमन में महक गए काँटों सा रक्षक बन कर के
उनके इस चमन की रक्षा को हम तन मन अपना लगा देंगे
हम भारत के कर्मवीर ...............................................
दिन दूर नहीं जो चाहत है, वो बात हमारी सुनो भारती
सब से आगे भारत अपना और करे विश्व तेरी ही आरती
जिसका हो मुकुट हिमालय सा, सागर भी जिसके चरण धुले
ऐसे भारत की शान पे हम, कर अपना सब कुर्बान देंगे
हम भारत के कर्मवीर ...............................................
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर" :-
Tuesday 20 January 2015
ग़ज़ल हूँ - (ग़ज़ल)
मैं वो ग़ज़ल हूँ जिसको तारीफ न मिली
एक रूह रह गया हूँ तसरीफ ना मिली
सब गुनगुना के चल दिए महफ़िल में साज़ पे
कोई गौर करे, फरमाये, तहजीब ना मिली
मैं वो ग़ज़ल हूँ किसको तारीफ ना मिली...........
अहसास की दरियाएं आँखों से बाह चली
वो भी जलीं की ग़म को तासीर आ मिली
मैं वो ग़ज़ल हूँ किसको तारीफ ना मिली...................................
जिसे कर सकूँ फ़ना मैं उनके ही सामने
ऐसी तो ज़िन्दगी क्या, तारीख ना मिली
मैं वो ग़ज़ल हूँ किसको तारीफ ना मिली
एक रूह रह गया हूँ तसरीफ ना मिली
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर":-
एक रूह रह गया हूँ तसरीफ ना मिली
सब गुनगुना के चल दिए महफ़िल में साज़ पे
कोई गौर करे, फरमाये, तहजीब ना मिली
मैं वो ग़ज़ल हूँ किसको तारीफ ना मिली...........
अहसास की दरियाएं आँखों से बाह चली
वो भी जलीं की ग़म को तासीर आ मिली
मैं वो ग़ज़ल हूँ किसको तारीफ ना मिली...................................
जिसे कर सकूँ फ़ना मैं उनके ही सामने
ऐसी तो ज़िन्दगी क्या, तारीख ना मिली
मैं वो ग़ज़ल हूँ किसको तारीफ ना मिली
एक रूह रह गया हूँ तसरीफ ना मिली
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर":-
Monday 12 January 2015
तेरी याद (गीत)
तेरी याद (गीत)
तेरी याद मुझको आयी, आँखों में अश्क आये
जाना जो दूर था तो क्यूँ पास मेरे आये?
तेरी याद .........................................
इन भीगी पलकों पे छाये हैं तेरे ही ख्वाब,
दिल में थी प्यार की चिंगारी, अब तो जल गयी हैं गम की आग?
लेता हूँ किसी का नाम, तेरा नाम लव पे आये!
तेरी याद ...................................................
दिल थाम के रहते थे, पर वो भी नहीं अब पास,
समझाऊँ किसे आखिर, अब मैं मेरे मन की बात?
कह दूँ अपनी गुजरी तू काश कभी आये !
तेरी याद .........................................
चाहत हैं तेरी मुझको, पर तू ही नहीं मेरे साथ,
अब चैन कहाँ दिल को , इसको को तो तेरी थी आस?
ये काश युँ ही फिर से वो बहार कभी आये!
तेरी याद .........................................
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर":-
तेरी याद मुझको आयी, आँखों में अश्क आये
जाना जो दूर था तो क्यूँ पास मेरे आये?
तेरी याद .........................................
इन भीगी पलकों पे छाये हैं तेरे ही ख्वाब,
दिल में थी प्यार की चिंगारी, अब तो जल गयी हैं गम की आग?
लेता हूँ किसी का नाम, तेरा नाम लव पे आये!
तेरी याद ...................................................
दिल थाम के रहते थे, पर वो भी नहीं अब पास,
समझाऊँ किसे आखिर, अब मैं मेरे मन की बात?
कह दूँ अपनी गुजरी तू काश कभी आये !
तेरी याद .........................................
चाहत हैं तेरी मुझको, पर तू ही नहीं मेरे साथ,
अब चैन कहाँ दिल को , इसको को तो तेरी थी आस?
ये काश युँ ही फिर से वो बहार कभी आये!
तेरी याद .........................................
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर":-
प्रभात - (कविता )
प्रभात
अंधियारी अब रात जा चुकी करेंगे हम सूरज से बात,
सूरज है पूरब और लाल कितना सुन्दर है ये प्रभात|
नदियाँ करती हैं कल कल ध्वनि, जिसमे दीखता हैं कल का पल|
शीतल जल में सूरज-अम्बर, लगते हैं नीले लाल कमल|
खुश्बू देती ये मंद समीर फूलों से भवरो से लेकर,
जो कहती हम रहते हैं जहाँ, वो धरती स्वर्ग से हैं सुन्दर|
नई सुबह हैं , दिन भी नया करनी हमको हैं नयी सुरुआत|
कितना सुन्दर हैं ये प्रभात.........................
दिखती तो नहीं ये मंद हवा पर कानों में कुछ कहती हैं,
बढ़ते ही रहो तुम भी वैसे जैसे गंगा यु बहती हैं|
सूरज की ये लाल किरण करती सबको हैं स्वर्ण लाल,
धरती का आँचल हम पे हैं हम सब हैं इस माता के लाल |
नए युग की ये नयी सदी, देना है हमें तूफां को मात|
कितना सुन्दर हैं ये प्रभात.........................
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर":-
अंधियारी अब रात जा चुकी करेंगे हम सूरज से बात,
सूरज है पूरब और लाल कितना सुन्दर है ये प्रभात|
नदियाँ करती हैं कल कल ध्वनि, जिसमे दीखता हैं कल का पल|
शीतल जल में सूरज-अम्बर, लगते हैं नीले लाल कमल|
खुश्बू देती ये मंद समीर फूलों से भवरो से लेकर,
जो कहती हम रहते हैं जहाँ, वो धरती स्वर्ग से हैं सुन्दर|
नई सुबह हैं , दिन भी नया करनी हमको हैं नयी सुरुआत|
कितना सुन्दर हैं ये प्रभात.........................
दिखती तो नहीं ये मंद हवा पर कानों में कुछ कहती हैं,
बढ़ते ही रहो तुम भी वैसे जैसे गंगा यु बहती हैं|
सूरज की ये लाल किरण करती सबको हैं स्वर्ण लाल,
धरती का आँचल हम पे हैं हम सब हैं इस माता के लाल |
नए युग की ये नयी सदी, देना है हमें तूफां को मात|
कितना सुन्दर हैं ये प्रभात.........................
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर":-
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