अलविदा कहता है दिन को रात्रि का अंतिम पहर
ये सितारे जा रहे हैं, जा रहा हैं चाँद भी
कौन कहता उन्हें, "ऐे चाँद तारे जा ठहर"
अलविदा कहता है........................................
दिन जो था हैं रात्रि वो ही पर नहीं वो बात हैं
तब तो था सूरज चमकता पर अब तो उजला चाँद हैं
रुक न सकता चाँद भी, नपनी हैं उसकी भी डगर
अलविदा कहता है........................................
ले सहारा सूर्य का ये दिन बना, पर नहीं दिन का ही साथी दिन बना
त्याग कर दिनकर गया, रजनीश आया साथ में
थम कर रजनीश को, निज को बनाया रात ने
ऐ दिन नहीं अब कुछ तेरा, जो कुछ भी तो रात्रि भर
अलविदा कहता है........................................
क्रन्दित हुआ हैं दिन ये कह की, सूर्य क्यों न साथ हैं?
साथ हैं ये चाँद तारे, अब नाम मेरा रात हैं
सूर्य भी अब क्या करे? क्या, ये कहे?
"दिन नहीं अब बलित की मुझको सहे,
चाँद हैं प्रतिविम्ब मेरा, अब दिन न डर"
अलविदा कहता है........................................
पवन भी ये जान पाया, की दिन नया अब आ रहा
रात्रि का अंतिम पहर अब रात्रि को ले जारहा
अनुभव नया सबको हुआ, नभचर की गूंजें हो रही
मिल रहा सबकुछ पुनः, अब रात्रि है बस खो रही
गिरता है क्यों हर दिन नया, बन कर के हर दिन पर कहर
अलविदा कहता है........................................
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर":-
No comments:
Post a Comment