कैसे समझाऊं, भारत से मेरा रिश्ता कितना गहरा?
एक जीवन में ना समझेगा, रिश्ता तो शदियों का ठहरा!
भारत बस नहीं स्वराज मेरा, मेरी रग रग में बहता है,
इसके हर कण को रोम रोम, चुपचाप प्रेम बस करता है।
है मेरे लिए न भुमिखंड, न सीमा इसकी हिंदुकुश।
हम पुत्रों की है मातृभूमि, जीवन जीता एक राष्ट्र पुरुष।।
ये तुम्हे बताया है किसने, कि चीख चीख के प्यार करो?
दिन रात लगाओ खंजर को बस धार, प्यार पर वार करो!
दिन रात रटो इंसानियत, इंसानियत नोची जाए।
इस क़दर करो हैवानियत, हैवानियत भी शरमाए।।
कुकृत्यों से नाम कमाना, इससे तो गुमनाम सही थे।
आजादी ले, खुद में लड़ना, फिर तो हम गुलाम सही थे।।
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर":-
एक जीवन में ना समझेगा, रिश्ता तो शदियों का ठहरा!
भारत बस नहीं स्वराज मेरा, मेरी रग रग में बहता है,
इसके हर कण को रोम रोम, चुपचाप प्रेम बस करता है।
है मेरे लिए न भुमिखंड, न सीमा इसकी हिंदुकुश।
हम पुत्रों की है मातृभूमि, जीवन जीता एक राष्ट्र पुरुष।।
ये तुम्हे बताया है किसने, कि चीख चीख के प्यार करो?
दिन रात लगाओ खंजर को बस धार, प्यार पर वार करो!
दिन रात रटो इंसानियत, इंसानियत नोची जाए।
इस क़दर करो हैवानियत, हैवानियत भी शरमाए।।
कुकृत्यों से नाम कमाना, इससे तो गुमनाम सही थे।
आजादी ले, खुद में लड़ना, फिर तो हम गुलाम सही थे।।
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर":-