Monday 14 September 2020

याद तो होगा

 चटखारे हजमोले के, खा इमली आंख मिचलाना,

खेत के मेडों का फिसलन, पुआलों में वो ढिमलाना,

बर्फ और चाट खाने को, लोट के पैर पटक रोना,

नई ढेरो किताबों में, कम से कम एक तो खोना,

उछलती गेंद पाने को, वो मां से रूठता बचपन,

वो बचपन!

याद तो होगा?


वो छुट्टी गर्मियों की और, खुशी ननिहाल जाने की,

वो सर पे ओट गमछे का तिकोना,

याद तो होगा?


खड़ी एक सायकिल घर पे, घुमाये उसके पहिए को,

चलाता हाथ से पैडल, लड़कपन!

याद तो होगा?


डली पर ओस की बूंदे, और मद्धम धूप मीठी सी, बदन पर शाल की परतें, और ठिठुरन!

 याद तो होगा?


सुबह विहगों कि कलरव से, गूंजती पास की बगिया,

कबूतर, मोर, बुलबुल के, वो गुंजन!

याद तो होगा?


चुराए तन बिछौने में, निकाले भाप होठों से,

वो तपना आग जाड़े में, तपन वो!

याद तो होगा?


वो सर से पांव तक भीगा, कटकते दांत, हिलते लब,

सिकुड़ता तन, खुशी में मन, वो तन मन! 

याद तो होगा?


कभी तो दिन में छायी शाम, और बादल बरसते वो, कड़कती जोर की बिजली, और सिहरन!

 याद तो होगा?


बरसती भीगती बदरी, वो झूले, पेंग, वो कजरी,

मचलता झूमता सावन, वो सावन!

याद तो होगा?


हरी चादर बिछी कोशों, बरसती बूंदों का चिलमन,

और उसके पार धुंधले घर, वो चिलमन!

याद तो होगा?


  -:रिशु कुमार दुबे "किशोर":-