चहूँ दिशा में चक्रवात है, करना सबकुछ आत्मसात है,
निशा गयी कुछ क्षण की बात है, आ उठ चल, चुप बैठा क्यों है?
हे नर तू तो अभिमन्यु है!
जिसने युद्ध की शिक्षा पायी माता के ही गर्भ में पलते,
वो रुक सकता है कैसे इन कंटीली राहों पर चलके |
ले समक्ष अब लक्ष्य तेरा है, अंत समय तू थकता क्यों है?
हे नर तू तो अभिमन्यु है!
जन्म से पहले मृत्यु से तू तो जीत चूका है समर भयंकर,
कैसा विष कैसे विष ब्याले, सहले सब बनके शिव शंकर |
बन जा प्रहरी प्रहर संभल, चंद्र ऊगा तू सोता क्यों है?
हे तर तू तो अभिमन्यु है!
-: रिशु कुमार दुबे "किशोर" :-
निशा गयी कुछ क्षण की बात है, आ उठ चल, चुप बैठा क्यों है?
हे नर तू तो अभिमन्यु है!
जिसने युद्ध की शिक्षा पायी माता के ही गर्भ में पलते,
वो रुक सकता है कैसे इन कंटीली राहों पर चलके |
ले समक्ष अब लक्ष्य तेरा है, अंत समय तू थकता क्यों है?
हे नर तू तो अभिमन्यु है!
जन्म से पहले मृत्यु से तू तो जीत चूका है समर भयंकर,
कैसा विष कैसे विष ब्याले, सहले सब बनके शिव शंकर |
बन जा प्रहरी प्रहर संभल, चंद्र ऊगा तू सोता क्यों है?
हे तर तू तो अभिमन्यु है!
-: रिशु कुमार दुबे "किशोर" :-