आता है बाद शाम के ये रात का अँधेरा
चिंगारियों के जैसे तारों का छाये घेरा
आता है बाद...................................
दीखता नहीं है कुछ भी, दीखते हैं फिर भी तारे
मिल जुल के पूछते है, क्या हम हैं तुमको प्यारे?
हम तो हैं रोज आते, और फिर हैं रोज जाते
ये आना, जाना देख के क्या सोचे मन ये तेरा?
आता है बाद...................................
आता है चाँद ऐसे, राजा हो तारों का वो !
बारात भी वो क्या हो जो वो भी तारो का हो!
हम चाँद से क्या पूछें? ये चाँद पूछता है
रातों में हो उजाला, या घाना अँधेरा?
आता है बाद...................................
प्रश्नो के ये झड़ी है, जो सामने पड़ी है
लगता है सज़ सवँर के प्रश्नावली खड़ी है!
बस पूछते ही रहते ये चाँद ये सितारे
और उनकी उत्तरो को मन जूझता है मेरा
आता है बाद...................................
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर" :-
No comments:
Post a Comment