Thursday 5 May 2022

इस चौदवी पे चाँद को मैं क्या कहूं क्या हो गया

 इस चौदवी पे चाँद को मैं क्या कहूं क्या हो गया 

महफ़िल को जिसपे नाज़ था वो  साज़ भी क्यों रो गया


पैमाने सारे थे पड़े टूटे नहीं शीशे कहीं

मैंने छुआ न जाम तो, इतना नशा क्यों हो गया 


नज़रे तो पूरी साफ थीं आया नहीं तूफां कोई

हम भी सके न देख क्यों उस नूर को जो खो गया 


इस चौदवी पे चाँद को मैं क्या कहूं क्या हो गया 

महफ़िल को जिसपे नाज़ था वो  साज़ भी क्यों रो गया


  -:रिशु कुमार दुबे "किशोर":-

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