हर एक कदम पे साथ तेरी याद ने दिया
बेचैन जितना था मैं वो भी रात ने किया
आये थे रौशनी में शाम होते ही चल दिए
ये शाम है उसकी गवाह जो आप ने किया
सोचा था वो बताएँगे की प्यार भी क्या चीज है,
मुझको नसीहत प्यार में जज़्बात ने दिया
शायद करे अहसास वो अपने कुसूर का
की प्यार के एक जख्म को नासूर कर दिया
माँगा तो जिंदगी था पर वो नहीं मिली
क्या सोच के मोहलत मुझे मेरी मौत ने दिया
मोहलत भी जो मिली मुझे तेरी याद के खातिर
उसको भी तेरी राह में बरबाद कर दिया
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर":-
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